भारत में जब विकलांगता की बात होती है, तो ज़्यादातर बातें व्हीलचेयर, पेंशन योजना, या एक्सेसिबल रैंप तक ही सीमित रह जाती हैं। लेकिन एक बड़ा और लगभग पूरी तरह अनदेखा किया गया पहलू है — सेक्स और विकलांगता। क्या एक विकलांग व्यक्ति को यौन इच्छाएं नहीं होतीं? क्या उन्हें प्रेम, स्पर्श, और साथी की तलाश नहीं होती? इस पर समाज लगभग पूरी तरह चुप है।
यह चुप्पी सिर्फ असहजता की नहीं है — यह अधिकारों की उपेक्षा है।
सेक्स और विकलांगता: मिथक बनाम हकीकत
भारतीय समाज में विकलांगता को अक्सर एक ‘निर्जीव’ स्थिति की तरह देखा जाता है। जैसे विकलांग व्यक्ति सिर्फ देखभाल पाने वाले हैं, न कि इच्छा रखने वाले इंसान।
कुछ आम मिथक:
- विकलांग लोग सेक्स नहीं कर सकते
- उनकी शारीरिक जरूरतें नहीं होती
- वो माता-पिता नहीं बन सकते
- अगर कोई उनसे प्रेम करता है, तो वो “बलिदान” कर रहा है
ये धारणाएं न केवल झूठी हैं, बल्कि विकलांग लोगों की आत्मसम्मान और यौन स्वायत्तता को भी सीधे चोट पहुँचाती हैं।

यौन शिक्षा की कमी और विकलांग लोग
भारत में यौन शिक्षा का पहले से ही भारी अभाव है। और जहां थोड़ी बहुत जानकारी दी भी जाती है, वहां विकलांग लोगों को शामिल ही नहीं किया जाता। उन्हें न तो अपनी शारीरिक सीमाओं और क्षमताओं के बारे में जानकारी मिलती है, न ही रिश्तों, कंसेंट (सहमति), या यौन सुरक्षा के बारे में।
इसका नतीजा यह होता है कि विकलांग युवाओं को या तो इंटरनेट से आधी-अधूरी जानकारी लेनी पड़ती है, या फिर वे चुप रहते हैं — अपनी इच्छाओं, उलझनों और डर के साथ अकेले।
विकलांग महिलाओं के लिए यह और भी कठिन
जब कोई विकलांग महिला अपनी यौनिकता की बात करती है, तो लोग अक्सर चौंक जाते हैं। समाज उसे “मासूम”, “कमजोर” या गैर यौनिक, “सेक्सलेस” मानता है। उसके शरीर को नियंत्रण में रखने की कोशिश की जाती है — कभी परिवार के नाम पर, कभी सुरक्षा के नाम पर।
कुछ मामलों में, विकलांग महिलाओं को उनकी जानकारी के बिना गर्भनिरोधक दवाएं दी जाती हैं या नसबंदी कर दी जाती है। यह न केवल मानवाधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि पूरी व्यवस्था में फैले गहरे पूर्वाग्रह को भी उजागर करता है।
प्रेम, रिश्ते और सामाजिक नजरिया
जब कोई विकलांग व्यक्ति डेटिंग करता है या शादी करना चाहता है, तो लोग उसे “भाग्यशाली” कहते हैं। जैसे प्रेम किसी तरह का इनाम है जो उन्हें “मिलेगा नहीं” और अगर मिल गया तो वो ‘exception’ है।
एक विकलांग इंसान को किसी से प्रेम करना और अपनी यौन इच्छाओं को व्यक्त करना, किसी भी अन्य व्यक्ति जितना ही सामान्य है। लेकिन उन्हें हमेशा साबित करना पड़ता है कि वे “लायक” हैं — प्रेम के, संबंधों के, और यौन सुख के।
मीडिया में कैसी दिखती है यौनिकता?
टीवी सीरियल्स और फिल्मों में विकलांग लोगों को या तो मजाक के पात्र के रूप में दिखाया जाता है या फिर “बेचारे” के तौर पर। उनकी यौनिकता पर या तो पर्दा डाल दिया जाता है, या फिर उसे “दया” से जोड़ दिया जाता है।
ऐसे में जरूरी है कि विकलांगता से जुड़ी कहानियों में इच्छा, प्रेम और सेक्स को भी इंसानी अनुभव के तौर पर दिखाया जाए — न कि किसी “स्पेशल केस” के रूप में।
रास्ता क्या है?
- यौन शिक्षा में समावेश: स्कूलों और कॉलेजों में यौन शिक्षा में विकलांगता को शामिल किया जाना चाहिए — इंटरैक्टिव, सेंसिटिव और एक्सेसिबल तरीकों से।
- परिवार की भूमिका: माता-पिता और अभिभावकों को यह समझने की ज़रूरत है कि उनके बच्चे, चाहे वे विकलांग हों या नहीं, एक दिन अपने रिश्तों और शरीर के बारे में सवाल पूछेंगे। उन्हें खुलापन और सहयोग देना होगा।
- स्वास्थ्य सेवाएं: डॉक्टरों, गाइनकॉलोजिस्ट्स और काउंसलर्स को विकलांग लोगों की यौन जरूरतों के प्रति संवेदनशील बनाना ज़रूरी है।
- मीडिया का सुधार: फिल्मों, वेब सीरीज़ और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर विकलांग लोगों की यौनिकता को सामान्य, सशक्त और विविध रूपों में दिखाना चाहिए।

निष्कर्ष
विकलांग लोगों की यौनिकता पर चुप्पी सिर्फ एक सामाजिक असहजता नहीं है — यह एक तरह का अदृश्य भेदभाव है। अगर हमें समावेशी समाज बनाना है, तो हमें सेक्स और विकलांगता पर बात करनी होगी। खुलकर, इज्जत के साथ, और संवेदनशीलता से।
चुप्पी तोड़िए। सवाल पूछिए। और सबसे जरूरी — मानिए कि हर शरीर को प्रेम, स्पर्श और इच्छा का हक है।